Story of Jagat Seth: बंगाल के सबसे अमीर व्यवसाई जगत सेठ की कहानी, जो अंग्रेजों को भी कर्ज देते थे

Story of Jagat Seth: भारत के इतिहास के पन्नों को पलटने पर ऐसे कई परिवारों की कहानी मिलती है जिनके पास असीम दौलत हुआ करती थी. उन्ही अमीर परिवारों में से एक था बंगाल का सेठ परिवार। आज जब अमीरों की बात होती है तो एलोन मस्क, जेफ़ बेजोस, अडानी अंबानी का नाम सामने आता है. लेकिन मॉर्डन हिस्ट्री में भारत के कुछ शाही परिवारों के पास इनसे भी ज़्यादा दौलत हुआ करती थी. 

ब्रिटिशों ने भारत को खूब लूटा, हज़ारों राजाओं की संपत्ति को अपना बना लिया, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो ब्रिटिश हुकूमत में भी अच्छे-खासे अमीर थे, इतने अमीर की अंग्रेज उनसे लोन लिया करते थे. अंग्रेजों को लोन देने वाले एक खानदानी सेठ थे ‘जगत सिंह’ जिन्हे लोग “मुर्शिदाबाद के जगत सेठ’ और ‘सेठ फतेहचंद” के नाम से जानते हैं. 

जगत सेठ या सेठ फतेहचंद कौन थे?

Who was Jagat Seth or Seth Fatehchand: 1723 में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने फतेह चंद को जगत सेठ की उपाधि दी थी। उसके बाद, फतेह चंद के पूरे परिवार को जगत सेठ परिवार के रूप में जाना जाने लगा। जगत सेठ 18 वीं शताब्दी में बंगाल में एक बहुत अमीर बैंकर थे. उनसे लोग और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी लोन लेती थी. 

मुर्शिदाबाद के सेठ परिवार का इतिहास 

मुर्शिदाबाद के सेठ परिवार के संस्थापक सेठ माणिकचंद (Seth Manikchand) माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जगत सेठ महताब राय के पूर्वज मारवाड़ के निवासी थे। इस परिवार के हीरानंद साहू मारवाड़ छोड़कर 1652 ई. में पटना में बस गए। 

उस समय बिहार की राजधानी पटना व्यापार का एक बड़ा केंद्र हुआ करता था। यहां हीरानंद साहू ने साल्टपीटर का बिज़नेस शुरू किया, उन दिनों यूरोपियन लोग साल्टपीटर के सबसे बड़े ग्राहक हुआ करते थे। नमक के कारोबार के साथ-साथ हीरानंद साहूने ब्याज पर उधार देने का काम भी शुरू किया था और जल्द ही वह अमीर साहूकारों में गिना जाने लगे। हीरानंद साहू के सात बेटे थे, जो बिज़नेस करने के लिए इधर-उधर जाते रहते थे। उसका एक बेटा  माणिकचंद उस समय बंगाल की राजधानी ढाका आया था।

सेठ मानिकचंद के घर में जगत सेठ का अभिषेक हुआ था, उन्होंने व्यापारिक कौशल और राजनीतिक समर्थन के माध्यम से लगभग पचास साल  तक इंडियन मार्केट पर शासन किया और उन्होंने बंगाल के जगत सेठ परिवार की नींव रखी थी।

औरंगजेब को 2 करोड़ रेंट देते थे 

बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सूबेदार ‘मुर्शीद कुली खान’ और सेठ ‘माणिक चंद’ एक दूसरे के दोस्त थे। माणिक चंद नवाब मुर्शिद कुली खाँ का न केवल खजांची था बल्कि उसके पास सूबे का राजस्व भी जमा था। दोनों ने मिलकर बंगाल की नई राजधानी मुर्शिदाबाद की स्थापना की और दो करोड़ का किराया औरंगजेब को भेजा था. जबकि उसने सिर्फ 1 करोड़ 30 लाख रुपए मांगे थे. 

मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने 1715 में माणिक चंद को सेठ की उपाधि प्रदान की। इसके बाद माणिक चंद परिवार जगत सेठ के नाम से जाना जाने लगा। माणिक चंद के बाद सेठ परिवार की सत्ता फतेह चंद के हाथों में आ गई, उनके समय में सेठ परिवार ऊंचाइयों पर पहुंच गया। लोगों का कहना है कि जगत सेठ के पास इतनी संपत्ति थी के उसके सामने साल 1720 में ब्रिटिश की अर्थव्यवस्था भी छोटी थी. वो अंग्रेजों को भी कर्ज दिया करते थे और उनसे ब्याज लेते थे. 

जगत सेठ साज़िश का शिकार हुए थे 

प्लासी के युद्ध के बाद मीर जाफर नया नवाब बना। उन्होंने 1763 में जगत सेठ, मेहताब चंद और उनके चचेरे भाई स्वरूप चंद सहित परिवार के कई सदस्यों की हत्या करवा दी और उनके शवों को मुंगेर किले  से फेंक दिया।

जगत सेठ का परिवार अब कहां है 

माधव राय और महाराज स्वरूप चंद की मौत के बाद, उनका मानिकचंद का साम्राज्य बिखरने लगा। उनकी जमीनें छीन ली गईं, और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनसे जो कर्ज लिया था, वह कभी वापस नहीं लौटाया। 1900 के दशक तक, साहू परिवार या जगत सेठ लोगों की नज़रों से गायब हो गए। आज उनके वंशजों का भी पता नहीं है। जगत सेठ का घर हजारदुआरी जगह से थोड़ी है जिसे अब एक संग्रहालय में तब्दील दिया गया है। 

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