बेटे की सफलता देख खुशी से पागल हुए पिता, कहा- पहले मेरे लिए है अधिकारी बाद में है बेटा..

मुझे अभी भी याद है, पापा मुझे और मेरी छोटी बहन मधु को अपनी साइकिल पर बाराबंकी में हमारे स्कूल ले जाते थे. उन्होंने हमारी पढ़ाई जारी रखने के लिए बहुत मेहनत की. आर्थिक तंगी के बावजूद कभी मेरी पढ़ाई प्रभावित नहीं हुई, मेरी स्कूल की फीस हमेशा टाइम पर जाती थी.
लखनऊ के विभूति खंड थाने में तैनात पुलिस कांस्टेबल जनार्दन सिंह के बेटे ने शहर में एसपी का पद संभाला था. उसके बाद कांस्टेबल पिता को आईपीएस अधिकारी और अपने बेटे अनूप कुमार सिंह को सलामी देना गर्व का पल था.
जनार्दन का गला भर आया जब उनसे पूछा कि उन्हें कैसा लगा. लेकिन यह पूछे जाने पर कि अपने आईपीएस बेटे को अपने बॉस के रूप में देखने पर उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी, जवाब मिला, "वह पहले एक अधिकारी है, फिर मेरा बेटा. मैं उसे वैसे ही सलाम करूंगा जैसे मैं किसी अन्य अधिकारी को करता हूं." मैं उनके आदेशों का पालन करूंगा. मेरी पहली प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे संबंध किसी भी तरह से मेरे काम को प्रभावित न करें." बेटे, अनूप, 2014 बैच के आईपीएस, जो लखनऊ में एसपी (उत्तर) के रूप में शामिल हुए, ने कहा कि यह उनके लिए अपने पिता का सामना करने और उनके अधिकारी होने के लिए परीक्षा का समय.
अनूप ने एक इंटरव्यू में बताया था कि "मेरे पिता हमेशा मेरी प्रेरणा रहे हैं. मेरे दिन की शुरुआत सुबह उनके पैर छूने से होती है. मैंने उनके सिद्धांतों पर खरा उतरने की कोशिश की है."
"उन्होंने मुझे कभी भी पढ़ने या खेलने के लिए नहीं कहा बल्कि हमेशा गुण और इंटीग्रिटी पर जोर दिया. उन्होंने हमेशा कहा कि जो भी करो दिल से करो. भले ही तुम माली बनो, हर पौधे की देखभाल अपने ही बच्चे की तरह करो."
एसपी ने बचपन की यादों को ताजा करते हुए कहा, "मुझे अभी भी याद है, वह मुझे और मेरी छोटी बहन मधु को अपनी साइकिल पर बाराबंकी में हमारे स्कूल ले जाते थे. उन्होंने हमारी पढ़ाई जारी रखने के लिए बहुत मेहनत की. आर्थिक तंगी के बावजूद कभी मेरी पढ़ाई प्रभावित नहीं हुई, मेरी स्कूल की फीस हमेशा टाइम पर जाती थी और मुझे अपनी जरूरत की सभी किताबें मिल जाती थीं. वह ड्यूटी पर चले जाते थे और हम महीनों तक नहीं मिलते थे, लेकिन वह अपने साथियों से पूछताछ करके हमारी पढ़ाई और स्कूल की एक्टिविटी पर नज़र रखते थे.