यहां पर जिस्म बेचने को मजबूर बाबर के देश की बेटियां:दिन में 10-10 कस्टमर,12 लाख कमाई; बदले में सिर्फ पिटाई..

जब उसका ध्यान समरकंद पर था, तो फरगना उसके हाथ से निकल गया। बाबर ने फरगना को वापस पाना चाहा तो समरकंद भी उसके हाथ से निकल गया। इसके बाद उसने काबुल तो जीता, लेकिन समरकंद या फरगना नहीं जीत पाया।
समरकंद में तीसरी बार हार मिली, तो उसने भारत का रुख किया और पानीपत की जंग में इब्राहिम लोदी को हराया। इसके बाद कई जंगें जीतीं और हारीं, लेकिन अपने घर अंदीजान नहीं लौट पाया, आखिर आगरा में उसकी मौत हो गई। उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान में आज भी बाबर को नेशनल हीरो माना जाता है।
आशिया (बदला हुआ नाम) भी उज्बेकिस्तान के इसी खूबसूरत शहर अंदीजान में पैदा हुई। पिता की बचपन में मौत हो गई, मां बीमार रहने लगी तो कमाना शुरू कर दिया। घर-घर काम करती, लेकिन बीमार मां का खर्चा नहीं उठा पा रही थी।
जान-पहचान की एक औरत ने दुबई में काम का सपना दिखाया और नेपाल के रास्ते दिल्ली ला पटका। छोटे से फ्लैट में कैद रही, मार खाई, रेप हुआ और फिर जिस्म बेचने पर मजबूर हुई। अब बस एक ही ख्वाहिश है कि अंदीजान लौट सके। बाबर नहीं लौट पाया था, क्या आशिया लौट पाएगी? ऐसी ही हजारों आशिया हैं, जो जिस्मफरोशी के लिए भारत लाई जा रही हैं, आखिरी उम्मीद है कि घर लौट पाएं।
अंदीजान उज्बेकिस्तान का चौथा सबसे बड़ा शहर है। यह शहर किर्गिस्तान की सीमा से सटा है। मुगल शासक बाबर की याद में शहर के बीचोंबीच 'बाबर चौक' बनाया गया
अंदीजान की आशिया: एक भागी हुई लड़की
हिंदी के मशहूर कवि आलोक धन्वा की एक कविता है ‘भागी हुईं लड़कियां’। इसमें वे लिखते हैं- ‘अगर कोई लड़की भागी है, तो यह हमेशा जरूरी नहीं है, कि कोई लड़का भी भागा ही हो’। उस छोटे से फ्लैट में दाखिल होते हुए मुझे सामने आशिया नाम की एक ऐसी ही ‘भागी हुई लड़की’ नजर आती है। वह लड़की, जिसने प्यार और समाज की बेड़िया तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि बेरोजगारी और जिम्मेदारी निभाने की मजबूरी में घर छोड़ा।
खूबसूरत भूरी, लेकिन उदास आंखों वाली आशिया मुझे देखते ही अपने गोरे बदन पर काली स्याही से बने बड़े-बड़े टैटू छिपाने लगती है। मैं उन्हें देख लेती हूं, वो नाकाम रहती है। उसके हाथ लगातार कांपते रहते हैं, जैसे एक लंबा एंग्जाइटी अटैक अब उसकी जिंदगी का हिस्सा है। जितना बोलती है, उसी के अनुपात में आंसू भी बहते रहते हैं, शायद शब्द अब उसके दुख को जाहिर करने में नाकाम हैं।
उम्र सिर्फ 22 साल, घर से 3000 किलोमीटर दूर। बीमार मां के पास लौटने की ख्वाहिश को ऐसे दोहराती है, जैसे मरने से पहले किसी की आखिरी इच्छा हो। न उसे ठीक से हिंदी आती है और न ही इंग्लिश।
आशिया: कहानी जो हजारों के साथ दोहराई जा रही है
आशिया बोलना शुरू करती है- मैं उज्बेकिस्तान के अंदीजान में पैदा हुई। 15 साल की थी, तो मेरी शादी हो गई। उम्मीद थी पति सहारा देगा, पर उसने तीन महीने में ही मुझे तलाक दे दिया। मैं एक धार्मिक लड़की थी। पर्दे में रहती और नमाज पढ़ती। हमारे यहां कोई बाहरी लड़कियों का चेहरा तक नहीं देख पाता। मां की दिल की बीमारी बढ़ती जा रही थी।
इस दौरान ओईनूर नाम की महिला मिली। उसने कहा कि दुबई में एक परिवार के बच्चों की देख-रेख करनी है, अच्छा पैसा मिलेगा। मैंने हां कर दिया। उसने मेरा पासपोर्ट लिया और दुबई का टिकट करवा दिया। मैं फ्लाइट से दुबई पहुंची तो मुझसे कहा गया कि दुबई में ही एक और शहर है, जहां मुझे फ्लाइट से जाना होगा। ये जनवरी 2022 की बात है।
दुबई से नेपाल और फिर सड़क के रास्ते दिल्ली
मैं उस शहर में पहुंची तो कहा गया कि यहां से बच्चों वाली मैडम के पास बस से जाना होगा। मेरा पासपोर्ट और आइडेंटिटी कार्ड भी ले लिया। अब तक मुझे नहीं पता था कि मैं किस शहर में हूं और मुझे कहां ले जाया जा रहा है। मैं यही समझ रही थी कि मैं दुबई में मैडम के पास जा रही हूं।
मुझे सड़क के रास्ते से लंबा सफर कराया और फिर एक नए शहर में ले आया गया। यहां एक मैडम के पास मुझे भेजा, उनके छोटे-छोटे बच्चे थे, जिनकी दो दिन मैंने देखभाल की। मैं समझ रही थी कि मैं दुबई में हूं और हाऊस कीपिंग का काम कर रही हूं।
दो दिन बाद मुझे एक मार्केट ले जाया गया और छोटे-छोटे कपड़े खरीदवाए गए। मैं समझ नहीं पा रही थी कि इन कपड़ों की मुझे क्या जरूरत है। फिर रात में मुझे बताया गया कि मेरे डॉक्यूमेंट उन लोगों के पास हैं और मैं बिना वीजा के भारत में हूं। मुझसे कहा गया कि यहां मुझे सेक्स वर्क करना होगा और अगर मैं ऐसा नहीं करती हूं तो अवैध तरीके से आने की वजह से मुझे गिरफ्तार करवा देंगे।
मुझे बहुत बाद में पता चला कि मुझे दुबई से काठमांडू (नेपाल) और फिर दिल्ली लाया गया था। पहले मुझे पीटा, फिर मेरे साथ रेप किया और उसके बाद मुझसे जबरदस्ती सेक्स वर्क करवाया गया। जिस बॉस के पास मुझे छोड़ा गया था, उसके पास मेरे जैसी ही और कई लड़कियां थीं। इन सबको उज्बेकिस्तान और दूसरी जगहों से मेरी तरह ही लाया गया था।
एक दिन में 10-10 कस्टमर आते, बस पीरियड्स के दौरान आराम मिलता
आशिया रोने लगती है। मैं चुप कराने की कोशिश करती हूं। अपनी कहानी सुनाने के दौरान उसके हाथ लगातार कांपते रहते हैं, वो घबराकर अचानक उज्बेकी में बोलने लगती है। फिर ठहर जाती है, शायद लौट आती है।
कुछ देर चुप रहने के बाद आगे कहती है- 'हमारी बॉस शाम को तीन बजे काम पर लगा देती। रोजाना बिना रुके सुबह 6-7 बजे तक काम करना होता। एक दिन में कम से कम 7-8 कस्टमर आते। किसी दिन दस से ज्यादा भी। हर तरह के लोग हमारे पास आते, उनकी अलग-अलग तरह की डिमांड होती। मैं बहुत थक जाती, लेकिन थकान जाहिर करने पर और पिटाई होती।
बॉस को लगता कि हम मना कर रहे हैं या हिचक रहे हैं तो हमें पीटा जाता, सिगरेट से दाग दिया जाता। बॉडी पर कट लगाए जाते। बहुत थक जाने पर बीमारी का बहाना करना पड़ता। जब पीरियड्स आते तो किसी तरह आराम मिलता।’
जब नहीं हुआ तो भाग आई, बस अब घर जाना है
आशिया आगे बताती हैं- ’मैं दिन रात अपना जिस्म बेच रही थी। इसके बदले मुझे कोई पैसा नहीं मिल रहा था। बॉस किसी न किसी बहाने से हम पर कर्ज चढ़ा देती। मुझसे कहा गया था कि काम का आधा पैसा मुझे मिलेगा। मुझे बताया गया कि मैंने एक महीने में 12 लाख का काम किया है और 6 लाख रुपए कमा लिए हैं, लेकिन कभी पैसा नहीं दिया गया।
एक बार मां की तबीयत बिगड़ी, तो मैंने पैसे मांगे। इस पर भी बहुत पीटा गया। कहा कि पहले मुझे अपना कर्ज उतारना होगा, फिर कुछ मिलेगा। हमें ड्रग्स दी जाती, जिससे नशे की लत लग जाए। फिर उस ड्रग्स का भी पैसा हम से ही लिया जाता।'
'भाषा ना आने की वजह से कस्टमर से भी कोई बात नहीं कर सकते। बस मुर्दा जिस्म की तरह लेटी रहती। कस्टमर अपनी भड़ास निकालते और चले जाते। मैं किसी भी तरह अपनी मां के पास लौटना चाहती थी। जब ये सब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो अगस्त 2022 में मैं उज्बेकिस्तान दूतावास पहुंच गई। मुझे रेस्क्यू किया गया। अब मैं एक NGO के साथ रह रही हूं और मेरा मुकदमा दिल्ली की अदालत में चल रहा है। मेरी बस एक ही ख्वाहिश है कि ये कानूनी कार्रवाई जल्द से जल्द पूरी हो और मैं किसी तरह घर लौट पाऊं।’
जरीना की भी यही कहानी, मेडिकल अटेंडेंट बनाकर लाए
अंदीजान से करीब 850 किलोमीटर दूर उज्बेकिस्तान का ही एक और शहर बुखारा है। जरीना यहां पैदा हुई थी, उसे मेडिकल अडेंटेंड बनाकर दिल्ली लाया गया और जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया गया। जरीना का पासपोर्ट छीन लिया। रेस्क्यू किए जाने के बाद से जरीना का पासपोर्ट दिल्ली पुलिस के पास है और वो भारत छोड़ने के लिए अदालत के आदेश का इंतजार कर रही हैं।
जरीना की तीन साल की बेटी है। वो अपनी बेटी की इकलौती लीगल गार्जियन थीं। उनकी गैरमौजूदगी में बेटी बूढ़ी मां के पास है। जरीना वहां नहीं है, इसलिए अब उज्बेकिस्तान सरकार बेटी को किसी अनाथालय या नए लीगल गार्जियन के पास भेज सकती है। जरीना को भारत में रहते हुए ये साबित करना है कि वही बेटी की मां हैं। जरीना बार-बार मोबाइल पर अपनी बेटी का चेहरा देखती हैं, उसे याद कर रोती हैं।
कैसे चल रहा है जिस्मफरोशी का रैकेट
देश की राजधानी दिल्ली में पुलिस की नाक के नीचे ये रैकेट चल रहा है। इसकी छानबीन करने पर कई चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं। इसी जुलाई में दिल्ली पुलिस ने मालवीय नगर में एक सेक्स रैकेट को बस्ट किया। यहां से उज्बेकिस्तान की 10 लड़कियों को छुड़ाया गया।
दिल्ली पुलिस ने इन लड़कियों के खिलाफ विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत मामला दर्ज किया। हैरानी की बात है कि एक NGO की देखरेख में भेजी गईं इन लड़कियों में से 5 भाग निकलीं। इस पर हंगामा हुआ तो दिल्ली पुलिस ने इन्हें दोबारा पकड़ लिया।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग के जाल में फंसी इन लड़कियों के अधिकारों के लिए काम कर रहे NGO और पुलिस से मिली जानकारी से कुछ बातें साफ हुईं:
1. भारत आने का रूट
UNODC (यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग एंड क्राइम) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत पश्चिम एशियाई देशों में सेंट्रल एशियाई देशों और थाईलैंड से सबसे ज्यादा लड़कियां ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए लाई जा रही हैं। सेंट्रल एशियाई देशों जैसे उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान से लड़कियों को दुबई या अफगानिस्तान लाया जाता है।
यहां से इन्हें नेपाल भेजते हैं, जहां से इन्हें सड़क के रास्ते से भारत लाया जाता है। कुछ लड़कियों को मेडिकल अटेंडेंट वीजा पर भी लाया जाता है। इस खेल में इंडिया के कई बड़े अस्पताल भी शामिल हैं। थाईलैंड से आने वाली लड़कियों के लिए बांग्लादेश का रूट इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें बांग्लादेश बॉर्डर से अवैध तरीके से भारत में लाते हैं और देश के बड़े शहरों के कथित सलूनों में मसाज करने के काम पर लगाते हैं। यहीं से इन्हें जिस्मफरोशी में धकेला जाता है।
2. भारत आने के बाद
भारत में तस्कर इन्हें अलग-अलग दलालों को बेच देते हैं, जो इनसे सेक्स वर्क करवाते हैं। इस दलालों में इनके देशों से भारत में आई महिलाएं और पुरुष भी शामिल हैं। आशिया को जिस्मफरोशी में लाने वाली ओईनूर नाम की महिला ट्रैफिकर उज्बेकिस्तान की ही है। वह अभी दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है और उस पर केस चल रहा है।
ऐसे ही दिल्ली के मालवीय नगर में रैकेट चला रहा कपल तुर्कमेनिस्तान का रहने वाला है। जो लड़कियां सेक्स वर्क में पकड़ी जाती हैं या जिन्हें रेस्क्यू किया जाता है, उन पर भी वैध दस्तावेज ना होने की वजह से विदेशी अधिनियम के तहत मुकदमा चलता है। इस केस की छानबीन एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) और दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने की थी।
डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (क्राइम) विचित्र वीर ने मीडिया को बताया कि तुर्केमिस्तान के नागरिक अहमद और अजीजा ये रैकेट चला रहे थे। ये लड़कियां भी नेपाल के रास्ते ही भारत लाई गई थीं। पिछले 6 महीने में 800 ऐसी लड़कियों को डिपोर्ट किया गया है, जिनमें से 500 उज्बेक और नाइजीरियन थीं।
3. फर्जी कर्ज के जाल में फंसा कर रखते हैं दलाल
मानव तस्करी का शिकार हुई लड़कियों को ये दलाल फर्जी कर्ज उतारने के जाल में फंसाते हैं। दलाल इन्हें बताते हैं कि उन्हें यहां रखने के लिए काफी पैसा खर्च किया जा रहा है, पुलिस को भी पैसा दिया जा रहा है। हेमंत शर्मा एम्पॉवरिंग ह्यूमिटी NGO के साथ काम करते हैं और इसके एंटी ट्रैफिकिंग विंग के प्रेसिडेंट हैं।
वे कहते हैं- ’लड़कियों से कहा जाता है कि जब तक 5-10 लाख रुपए का ये कर्ज नहीं उतरेगा, तब तक पासपोर्ट नहीं मिलेगा। दलाल और बॉस ये कहते हैं कि अगर तुरंत लौटना है तो ये पैसा लौटा दो। लड़कियों को भारतीय कानून के बारे में जानकारी नहीं होती और ना ही इनकी यहां कोई जान-पहचान होती है। जिन दलालों के जाल ये फंसी होती हैं, वही यहां इनके इकलौते मददगार होते हैं।’
4. कानून से मिली राहत भी बनी सजा
छानबीन करने पर पता चलता है कि साल 2012 में गृह मंत्रालय ने भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक नोटिस जारी किया था। इसके मुताबिक, देह व्यापार का शिकार ज्यादातर लड़कियों के पास पासपोर्ट और वीजा नहीं होते। ऐसे में अगर कोई लड़की रेड में पकड़ी जाती है और वह मानव तस्करी में शामिल नहीं है, तो उस पर विदेशी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज न किया जाए।
हेमंत शर्मा बताते हैं- ‘आज भी सैकड़ों लड़कियां ऐसी हैं, जिन पर मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है, मुकदमे क्यों दर्ज किए गए और राज्यों की पुलिस गृह मंत्रालय की इस गाइडलाइन का पालन क्यों नहीं करती, इसका जवाब किसी के पास नहीं।
जमानत मिलने के बाद लड़की फिर बाहर आ जाती है और जब तक मुकदमा चलता है वो देश में रह सकती है। उन्हें फिर से इस तरह के आरोप में गिरफ्तार भी नहीं किया जा सकता। यानी एक तरह से वीजा ना होने के बावजूद वो भारत में रह पाती हैं। इसी का फायदा उठाकर दलाल फिर से इन्हें सेक्स वर्क में लगा देते हैं।’
5. उज्बेकिस्तान में बेरोजगारी, भारत के 100 रुपए वहां 13,600 रुपए के बराबर
मध्य एशियाई देशों, खासकर उज्बेकिस्तान में गरीब परिवारों की लड़कियों को मध्य पूर्व और भारत में नौकरी का लालच दिया जाता है। उज्बेकी करंसी को सोम कहा जाता है। एक भारतीय रुपए की कीमत उज्बेकी करेंसी में 136.6 सोम है। यानी अगर यहां 100 रुपए कमाए तो वो उज्बेकिस्तान के 13 हजार 600 रुपए के बराबर हो जाते हैं।
इंस्टीट्यूट वॉर एंड पीस रिपोर्टिंग के मुताबिक, उज्बेकिस्तान की लड़कियां सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पड़ोसी देश किर्गिस्तान समेत पूरे एशिया और यूरोप में भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग के जरिए भेजी जा रही हैं। काम देने के बहाने इन्हें लाया जाता है और फिर उनसे जिस्मफरोशी कराई जाती है।
लड़कियों के विदेश जाने की वजह उज्बेकिस्तान में बहुत ज्यादा बेरोजगारी भी है। आंकड़े देखने से पता चलता है कि जनवरी 2022 में उज्बेकिस्तान में बेरोजगारी की दर 9.6% थी।
पीड़ित लड़कियों से ही नई लड़कियों को फंसवाया जा रहा
कर्नाटक हाईकोर्ट में ऐसे ही एक मामले में आदेश दिया था कि अगर इस तरह की किसी लड़की को जमानत मिलती है, तो उसे या तो डिटेंशन सेंटर भेजा जाए या ऐसी जगह रखा जाए, जहां उसके मूवमेंट पर नजर रखी जा सके। हालांकि, कई लड़कियों से बात करके पता चला है कि वकील की फीस और कानूनी कार्रवाई के खर्च के नाम पर दलाल उन पर और भी मोटा कर्ज चढ़ा देते हैं।
कर्ज उतारने के लिए इनसे ही दूसरी लड़कियों को भी फंसाने और इंडिया बुलाने के लिए कहा जाता है। आयशा नाम की ही एक लड़की को पहले जिस्मफरोशी के जाल में फंसी अफरोज नाम की लड़की भारत लाई थी। अफरोजा नाम की ये लड़की फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद है। अफरोजा उज्बेकिस्तान में आयशा के घर के पास ही रहती थी।
रशियन बताकर बेचा जा रहा, सबसे ज्यादा मांग भी इन्हीं की
भारतीय सेक्स बाजार में रशियन लड़कियों की मांग सबसे ज्यादा है। उज्बेकिस्तान और दूसरे सेंट्रल एशियाई देश पहले सोवियत संघ का ही हिस्सा थे। इन देशों की लड़कियां रशियन जैसी ही दिखती हैं और भाषा भी बोल लेती हैं। भारतीय मार्केट में इन लड़कियों को रशियन कहकर ही बेचा जाता है।
आमतौर पर दिल्ली के सेक्स मार्केट में एक बार सेक्स करने के लिए या कुछ घंटों के लिए एक लड़की का रेट 5 से 10 हजार रुपए तक है। कम उम्र की लड़कियों का रेट 15 हजार रुपए तक भी है। आमतौर पर एक दिन में 7 से 8 कस्टमर उनके पास लाए जाते हैं और कई बार ये संख्या 10 के पार भी चली जाती है। कई बार आधी या पूरी रात के लिए एक कस्मटर के पास ही भेजा जाता है, जिसके लिए काफी ज्यादा चार्ज किया जाता है।
हेमंत शर्मा बताते हैं- ’इन लड़कियों का पैसा तीन लोगों में बंटता है। पहला बॉस जो इन्हें भारत लाता है। दूसरा दलाल जो इनके लिए कस्टमर लाता है और तीसरा सिस्टम में बैठे लोग, जिनकी शह पर ये काम चलता है। एक लड़की से एक दिन में एवरेज 50 हजार रुपए तक का काम करवाया जाता है। इस धंधे में पैसा इतना ज्यादा है कि इसमें लिप्त अपराधी ड्रग्स का धंधा करने वालों से भी ज्यादा पैसा कमा लेते हैं।’
आशिया जिस बॉस के पास रहती थीं, उसके पास उन जैसी 10 से ज्यादा लड़कियां थीं। यानी वो एक महीने में औसतन दो करोड़ रुपए का कारोबार कर रही थी।
अब आगे क्या…
लौटने से पहले मैं आशिया से पूछती हूं, अब आगे क्या? वो चुप हो जाती है, बस उसके हाथ कांपते रहते हैं। फिर जैसे कारादरया नदी के किनारे पहाड़ियों से घिरे अंदीजान के अपने घर लौट जाती है, कहती है- ’मैं जानती हूं कि घर लौटकर मुझे बहुत सवालों का जवाब देना होगा। बहुत सी आंखों का सामना करना पड़ना होगा। मेरे लिए हालात वहां भी आसान नहीं होंगे, लेकिन कम से कम मैं अपनी बीमार मां के पास तो रह सकूंगी।
मेरे जिस्म पर अब टैटू हैं। ये निशान जाने वाले नहीं हैं, मुझसे इनके बारे में पूछा जाएगा, मेरे पास कोई जवाब नहीं है। मेरी बर्बाद जिंदगी में अब बस एक ही उम्मीद है-अपनी मां को देखना चाहती हूं। मैं चाहती हूं भारत सरकार और उज्बेकिस्तान सरकार मेरी और मेरी जैसी और लड़कियों की मदद करे। हमें अपने घर लौटा दें, बस इतना कर दें।’
आखिर में आपके लिए एक सवाल...
हमने ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मसले पर उज्बेकिस्तान सरकार का पक्ष जानने के लिए उज्बेक ऐंबैसी को मेल किया है। जवाब आते ही उसे स्टोरी में अपडेट कर दिया जाएगा।